रविवार, 15 जुलाई 2012

बाबा रति लाल ....

गपोड़ी बे- लगाम होते हों ऐसे मुआमले कम ही दिखाई देते हैं हाँ ..वे अवसरों की बाट जोहते हैं फिर शुरू हो जाते हैं ..अक्सर शादी -विवाह के अवसर पर खलिअरी के समय ..या .अंतिम संस्कार के दुखद घटना क्रम में मैं भी वे सर्वमान्य वक्ता माने जाते हैं ...रति लाल बाबा कह्लेते हैं इन्हें ..ध्यान आ रहा है ...इलाहाबादी घटना ...सन९६-९७ रहा होगा मैं इलाहाबाद में सपने पाल पोश रहा था ..इसी दौरान मेरे प्रतियोगी अग्रज प्रमोद सोनकर, जो आजकल डी..एस.पी. मध्यप्रदेश शासन हैं ..इनकी दादी का निधन हुआ और हम सभी मित्र अंतिम संस्कार में सम्मिलित होने गए ...वहीँ मुलाकात हुयी रति लाल से ..प्रभावित पक्ष के रिश्तेदार तो न थे ...फिर मालूम पड़ा की ये अंतिम संस्कार स्पेशलिस्ट हैं ..जो घाट पर खुद ही आ जाते हैं ...लकड़ी कहाँ कितनी लगनी है ..शरीर की माप के अनुरूप चिता कैसी बनानी है ..कंडे कहाँ लगने हैं ..घी कब डालना है ..दिशा निर्धारण ..सब मुह जवानी था ...अपने अनुभवों को बताते हुए बाबा रति लाल हांक देने लगे .." एक बार नई शादी बाली महिला का अंतिम संस्कार कराया ...और जब मैं रात को घाट पर आया तो बो मुझे अपने गहने देने लगी .. मैंने मना किया फिर भी नहीं मानी ..बोली मैं तो पहन न सकी तुम अपनी बीबी को पहना देना ..मैं तृप्त हो जाउंगी ..का करी भैया..आत्मा की शांति के खातिर ई सब करी पडी ..... ..डर के मारे रात भर हमें भी बैचैनी रही और रात भर दिन की घटना याद आती रही ...

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