गुरुवार, 12 जुलाई 2012

चमत्कारी सुरेन्द्र भैया .....

गपोड़ी कभी निरर्थक प्रयास नहीं करते ..वे भांपते हैं तब दागते हैं ...! जो उसकी ज़द मैं आजाये ये दोनों की किस्मत पर निर्भर करता है ..! खैर आज गप्पों ताजदार है सुरेन्द्र गपोड़ी ...! सुरेन्द्र भैया किस्मत के धनी थे सो खड़े होने के लिए बहुत मेहनत नहीं करनी पडी ..बस एक समस्या उनके साथ हमेशा देखि गयी की वे सरकारी आंकड़ों को चबाकर उसकी नयी व्याख्या करके बाबुओं  , अधिकारीयों सभी की कहानी लगा देते थे ..! और किसी की कभी बात मानें हों इसके लिए तो भगवान् बगलगीर हो जाता था ..सो यही खासियत उनकी शख्सियत को नयी पहचान देती थी ..! भगवान का सानिध्य दिन भर प्राप्त करते थे गले में ताबीज़ , हाथ में मंत्रित कडा , माथे पर लंबा सा टीका ..जिसका रंग प्राय बदलता रहता ..! भैया साल भर कोई न कोई अनुष्ठान करते रहते थे ..सो इस बात का गुमान था की देवता लगातार उनके साथ रहते हैं ..! दूकान पर टांगी गयी काली की तस्वीर के इतने पैर छुए गए की उतने हिस्से का रंग उजला हो गया ...! मन्त्र मुहं ज़ुबानी याद थे वशीकरण , फ़ैल-पास , लाभ-हानि ..सब कुछ उनके कहे अनुसार हो जाता ...यह बात अलहदा है की कभी इनमे से किसी के लिए भला नहीं करा पाए ..! वानगी यह की , देवता रूठ जाते हैं ..सो इस चाल से सबको धकिया देते थे ...! अगरबत्ती , धूप बत्ती की गंध पाते ही  देवता इनके सर पर खड़े हो जाते और वे सुरेन्द्र भैया से आदेश चाहते ..चेहरे  के हाव- भाव पहुंचे हुए तांत्रिक से ...उनकी अदाबाजी से बन्दर भी शरमा जाए ..ऐसी भाव भंगिमाएं लेकर उनके देवता आते ..! अजीब सी आवाजें  भी देवता की ही निकलती ..बेचारे सुरेन्द्र तो अनजान थे इन सबसे ..देवता अगरबत्ती की  गंध सूंघे फिरता ..फिर इनके सर चड़ता तब भैये जीभ निकालते ..तो कहते काली आई , पेट उमेंठ्ते तो कहते जिन्न बाबा आये , हाथ रगड़ते तो कहते खान सरकार आये ...बस बारी - बारी से सब उनके दर पर दस्तक देते और काम की बाट जोहते ...! एक बार की बात है दूकान के बाहर एक अधेड़ गर्मी से गश खा गिर गया ..सुरेन्द्र भैया उठे और बोले प्रेत ने पकड़ लिया ..ठीका -ठीक दोपहर में निकला है ..राशि मिल गयी ..फिर मंगाया भैया ने निम्बू , सिंदूर , लोंग , पान का पत्ता , जायफल , मिठाई ...और देवताओं का दौर शरू हो गया ..बारी से बारी से देवता हाजिरी बजाते और उस अधेड़ की कई समस्या सुनाते ..वो बेचारा अचेत लेकिन भैया .पुरी तरह मुस्तैद ..भैया .की भंगिमाएं बिकराल होती जा रहीं थीं ..जो देखता सो घबरा जाता ..बस इसी मौके की फिराक में थे ..अचानक भैया की हरकतें शिथिल हो गयीं ...  जयकारा लगने लगा सच्चे दरवार का ..अचानक भैया की आँखें खुलीन कुछ जायजा ले रहीं थी ..देखा अधेड़ अभी भी लगभग  बेहोश है सो लोटे से पानी निकाल कर मंत्रित कर छींटे मारे ..मुहं में थोडा पानी डाला ..और निम्बू चटाने की हिदायत दे दी ..यथा योग्य आदेश का पालन किया गया और अधेड़ की चेतना लौटने लगी ...ताली मारकर सुरेन्द्र भैया बोले , ' जे देखो मैया पकड़ ले आई ..वाह री मैया परमेश्वरी जमराज से बचा लायी ..जैकारा   शेरों वाली का ..जय हो ..' ! अधेड़ मामला समझ न पाया ..लेकिन लोगों को सुरेन्द्र भैया पर अटूट भरोसा हो गया ..और उनकी रेडीमेड की दूकान चल निकली ..! काश वे पहले ही पानी के छींटे  मारकर निम्बू पानी पिला देते तो बेचारा जल्दी  आराम पा जाता ....!  

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