शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

मंजीत भैया ...बिंदास

गपोड़ी कभी भी संज्ञा शून्य नहीं होते ..वे अंतस को टटोलते हैं फिर वार करते हैं ..! इसी बोध के साथ आज के गपोड़ी है मंजीत भैया ....! ये मेरे ही संस्थान में अपनी सेवाएँ देते हैं ..नए वैवाहिक जीवन में विगत माह प्रवेश कर गए सो रंग रोगन करा लिए थे अचानक नव अवतार से लगने लगे ....! शरीर सिंगल चेसिस जैसे पुरानी लूना...लेकिन अवरेज बहत कम देते हैं ...! दांत सुरती का संग पाकर अपनी हेसियत गंवा बैठे हैं ...चेहरा चिपके हुए बरसाती पोस्टर सा होता जा रहा है ..लेकिन अदम्य लालसाओं का भण्डार जफ्त किये हुए हैं ..हमारे मंजीत ...! मंजीत की दिन चर्या क्या होगी ये तो ज्ञात नहीं ..लेकिन भाव भंगिमाएं ये दर्शाती हैं मानो सारे शहर को यही संचालित कर रहे हैं ....! एक बार मंजीत ने बताया सर , पता है मेरी शादी कैसे तय हुयी ..मैंने कहा नहीं ,... तब मंजीत बोले मैंने अपनी तनख्वा बढ़ा कर बता दी ..इस से पहले सही बताये तो लोग रिजेक्ट कर दिए अबकी बढ़ा कर बताये तो सेलेक्ट हो गए ..क्या करें सर शादी की बात थी ..लोग तो समझते नहीं ...अब सर थोड़ी तनख्वा बढ़ा दीजिये ....!

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