शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

लक्षमण पंडित ....

वाह! बादल और गपोड़ी दोनों खूब बरसते हैं ...गपोड़ी विज्ञ होकर भी अनभिज्ञता दर्शाते हैं लेकिन फिर भी मासूमियत से स्वीकार करते हैं ..'भैया अब हम का जानब '....! आज के इस श्रंखला के सहरेदार हैं लक्षमण पंडित ..! सन ९४ तक इनका सानिध्य प्राप्त हुआ ..उड़ते हुए खबर मिली है की आज कल ग्वालिअर की शोभा बढ़ा रहें हैं ....वो तो यूनेस्को निदेशक परिचित न था ..नहीं तो विश्व धरोहर बन गए होते हमारे पंडित जी ..! स्त्री विषयक प्रसंगों पर आत्मीय रसिकता झलकती थी आदर्श कृष्ण को मानते थे ..लेकिन कर्मगत नहीं बस प्रेमगत ..! शादी हो न सकी ( कारण अज्ञात ) लेकिन उसकी कमी उन्हें कभी महसूस नहीं हुयी अब इस आधार पर वे तपस्वी पंडित तो नहीं कहे जा सकते ..लेकिन ब्रह्मचर्य को आवश्यकता अनुरूप जेब में डाल लेते थे ...! गुटखा के खासे शोकीन थे एक सींक लगातार दांत की गहराई नापती रहती थी ...और छोटे छोटे सुपारी के टुकड़ों को बाहर का रास्ता दिखाकर ही मानती थी ..इस पर उन्हें जो संतोष मिलता वो तो उनके चेहरे को देखकर ही लग जाता था ...दक्षिण भारतीय न थे फिर भी लुंगी- बनियान उनका आदर्श परिधान था ...कहते थे शरीर के हर भाग उचित अनुपात में खुली हवा मिलनी चाहिए ...! इस सिद्धांत के पोषक होने के बाबजूद उन्हें अक्सर दाद -खाज की दवाओं का सेवन और लेपन करना पड़ता था ....! पंडित जी अपनी बातों में वही ताकत रखते थे जो अमेरिका रखता है जो कहा है वही है ....इसी विन्यास में एक बार उन्होंने बताया की "रात को सपने में एक औरत आई ..( इसके अलावा उनके पास कोई आ भी नहीं सकता था ..शेष का प्रवेश निषेध जो था ...) और इन्हें अपने साथ छत पर ले गयी ..वहाँ उसने बताया की मैं यहाँ से कूंदी मारकर मरी थी और तुम मेरे पिछले जन्म के पति हो ...! इतना सुनकर पंडित जी की घिग्गी बांध गयी .फिर उस औरत ने कहा की अब मैं तुम्हारे साथ रहूंगी ....! पंडित जी को काटो तो खून नहीं ....अचानक हडबडाकर उठ बैठे दसों लोटे पानी चढ़ाया ..सांस को नियंत्रित किया ..और हनुमान चालीसा पढ़ते हुए हनुमान जी के सामने प्रण कर लिया की सारी महिलाएं मेरी बहने हैं ....

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