शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

दुलहनिया पाए संतोष भैया .....


दुलहनिया पाए संतोष भैया .....

संतोष भैया , इन्हें ' दादुर' भैया कहने में कभी कोताही नहीं वरती! वे इसे प्यार का संवोधन  मानते थे , 'दादुर' कहने का  अपना निहितार्थ था ! वे अक्सर बरसात  के दिनों में ही लोगों के कमरे पर जलपान या  आहार  के लिए प्रगट होते थे ! छात्रावासी जीवन में वे अक्सर हमलोगों को प्यार से वे 'कुकुर' बुलालेते थे ! इसमें उन्हें बड़े ही अपनेपन का अहसास होता था और हम लोग भी उनका कोई भ्रम नहीं तोडना चाहते थे ! लेकिन वे बहुत निकटता की परिधि में कभी आ नहीं सके पता नहीं क्यों ?? संतोष भैया की उम्र लगभग हम लोगों के  बराबर ही थी , यही कोई इमरजेंसी के एकाध वर्ष पहले की शायद भादों का महीना भी रहा  हो ! संतोष भैया जब अध्ययन के लिए आये तब खासे किशोर थे युवा होने की तयारी में थे मूंछे आने का असफल  प्रयास  कर   रहीं थी लेकिन संतोष भैया उनकी छटाई कर देते सो चिरकालिक किशोर से दिखाई देते ! एक बार गलती से केंची का संगम मूछों और दाढ़ी से न हो सका सो रातों रात युवा हो गये ! शहर की हवा में सुरती का सुख भी पा गये ! लगता है की कटनी से एकाध ट्रक चूना तो इनकी गालों की सफाई कर गया होगा ! लेकिन मुख धवलता नदारद थी दन्त पंक्ति , मुरम की लालामी को मात देती थी ! संतोषी सदैव सुखी होतें हैं ये इन्हें देख कर कभी लगा नहीं , सदैव व्यग्रता विद्यमान रही जो शायद इनके विकास की इच्छा दर्शाती थी !
दादुर भैया में बड़ा आदमी बनने  की उत्कट  इच्छा हम लोगों के समान ही थी ! सो इसी  प्रयास में सिविल सेवा  की तयारी प्रारंभ कर दी ! राष्ट्रसेवा का इस से बेहतर विकल्प सिर्फ नेता गीरी हो सकता था लेकिन परिवार कोई ऐसा हाथ रखने वाला नहीं था , सो इस इच्छा को पाल न सके ! बस ले देकर सिविल सेवा ही बची थी सो कूंद पड़े तन और मन से ...!

                                      उम्र बढ़ते-बढ़ते वे प्रांतीय सेवायों की और झुक गए और उम्र बढ़ी  तो हम लोगोंका साथ छूटने  लगा लेकिन वे ठौर से नहीं डिगे ! प्रांतीय सेवायों से गुजरते हुए शिक्षक भर्ती, कांस्टेबल भर्ती , फ़ूड इन्स्पेक्टर , और इसी प्रकार की नाना सेवाओं  की इच्छा पाले प्रौढ़ वय के तार से जुड़ने लगे !अंकल   शब्द अक्सर उन्हें सुनाई  देने लगा ! घरवाले   भी कन्नी   काटने  लगे , बाल भी साथ छोड़ने लगे इसी उतार चड़ाव के दौर के अंतिम क्षणों में निजी बीमा कम्पनी के अभिकर्ता बन गए ! साहेब से कम न लगाते थे, खुद को  ! किरायेदारी का कमरा अब तक नहीं छोड़े थे ...! और इसी पूरे उपक्रम में शादी की बात भी चल निकली ! विकल्पों का अभाव था सो प्रस्ताव तुरंत लपक लिए , भरी गाडी में टूटी सीट भी सुख देती है इस भाव को संतोष भैया से बेहतर कौन जान सकता था ! कार्ड छपे एक कार्ड हम जैसे कुकुरों का सांझा करके रवाना किया गया था ! सोचा इसी बहाने सबसे मिलना हो जायेगा ! शादी में उल्लास से सब मिले संतोष भैया पहले कह दिए बरात में सबको साथ ही रहना है ! रात को किराये  की कार खाली होने के बाद बारात चली , हम भी चलने लगे ! संतोष भैया के चेहरे पर संतोष के भाव थे ...! उनसे हम सब ने पूछा की भैया घोडी काहे नहीं मंगा लिए ! संतोष भैया बोले , अरे अब घोडी पर बैठने लायक बचे ही कहाँ , सारा पौरुष तो सिविल सेवा की तयारी ने हर लिया और पौरुषहीन पुरुष को घोडी पर बैठने का अधिकार नहीं है ! बड़े पते की नैतिक बात कह गए संतोष भैया , काश नैतिकता विहीन नेताजी  भी इस विचार से परिचित हो जाते ! जय हो ...दादुर भैया की

बुधवार, 28 नवंबर 2012

अहिवरन देशभक्त

अहिवरन , इस नाम के शब्दार्थ पर जाने की अधिक आवश्यकता नहीं है ..हाँ , लेकिन इतना ज़रूर जान लीजिये की ये राष्ट्र निर्माण के नाम पर शहीद होते-होते ज़रूर बचे ! अहिवरन को बचपन से बड़ा मलाल था की कैसे देश की सेवा करें?? सेना में शरीर धोखा देता था , पुलिसिया रॉब चहेरे  पर फबता न था , और अधिकारी बनने का सपना देख कर कोई गुनाह नहीं करना चाहते थे ! बस फिर भी राष्ट्र निर्माण का अभूतपूर्व संकल्प लिए बैठे हुए थे ! शादी की अतरिक्त योग्यता थी नहीं , और पूर्ण कालिक प्रचारक बनने से सख्त परहेज़ था ! जवान कुंवारा अहिवरन रात तक फ्री टू एयर चेनल तलाशते-तलाशते एक योगी चेनल पर रुक गया ! बाबा ने संवाद किया क्या तुम देश भक्त हो ??? बरबस ही सब बोले हाँ , तुम भारत माता की सेवा करना चाहते हो ?? प्रतिउत्तर मिला हाँ , क्या देश द्रोहियों का नाश करोगे ?? सामूहिक उत्तर हाँ ! फिर बाबा ने निरोगी काया और राष्ट्रनिर्माण का संयोजन कर अट्टहास लगाया ! अहिबरन बाबा की बातों में आगये जैसे रावण की माया के सम्मुख सीता ! बाबा ने कहा की गरम पानी से नहाने से धातु क्षय होता है , नपुंसकता आ जाती है , अहिवरन के चहेरे पर चिंता की लकीरें खिंच गयीं , सोचा मैं कैसे परीक्षण करूं.. ? साधन तो कोई उपलव्ध न था लेकिन नपुंसक होने खतरा ज़रूर डराने लगा ! क्योंकि गरम पानी से पता नहीं कितनी धातु का क्षय हो चुका होगा ?? इसी मनन में तडके ठन्डे पानी से ठण्ड में नहाने के लिए आतुर हो गए ! सोचा की अब तक अनजाने में जो गलती हुयी सो तो ठीक है लेकिन आगे नहीं होने दूंगा ! क्योंकि राष्ट्रनिर्माण में भले ही सीधे योगदान न दे सका तो क्या हुआ लेकिन दो-चार कुचल मानव संसाधन देकर तो योगदान देकर तो राष्ट्रनिर्माण कर ही  सकता हूँ ! न्यूटन के पिता को भले कोई नहीं जानता लेकिन न्यूटन को तो दुनिया जानती है ! बस इस राष्ट्र निर्माण के पुनीत कर्म को करने के चक्कर में सीधे बाथरूम में ऊर्जा से लवरेज होकर घुसे ! ठन्डे पानी को डालते ही करंट सा लगा साध न पाए धप्प  से गिरे शरीर अकड़ गया ,मानो  जान ही निकल गयी ! प्रकृति के कई प्रकोप एक साथ टूट पड़े , अहिवरन सुबह -सुबह अस्पताल में टांग उठाये पड़े मिले ! बोले बस राष्ट्र निर्माण क प्रयास है सो इसे जारी रखना है नहीं तो देश हमसे क्या कहेगा ! की यहाँ कितने आस्ट्रेलिया बने जा रहे हैं और तुम उसमे एक ईंट भी नहीं लगा सके !!!