बुधवार, 5 दिसंबर 2012

त्रिलोकी नाथ की रजाई ...

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त्रिलोकी नाथ , भैया नाम पर मत जाईये ये तो अभी १ इंच जमीन के भी नाथ नहीं है , परिवार से बनती नहीं और गृहस्थी जुडती नहीं ! शक्लो सूरत भी ऐसी की स्वयं कई बार कमबख्त शीशा भी चूर होते बचा ! बढती दाड़ी पर कभी-कभी हाथ साफ़ कर लेते थे सो उस दिन लगता की आज नया अवतार हुआ है , नहीं तो त्रिलोकी लंका के सैनिक से दिखाई देते , जैसा कि कुछ नाटकों में देखा ! त्रिलोकी भेद विज्ञान के माहिर
 खिलाड़ी थे मेरा -तेरा सब जानते थे लेकिन उनका अपना सिद्धांत यह था कि जो मेरा है सो मेरा ,और जो तेरा है वो भी मेरा है ! त्रिलोकी को रात बिरात शादी के सपने बहुत आते , और इसी में सुख पा लेते ! पता नहीं कितनी सिलवटें इन्होने अपने जतन से बनाई ! इस मामले में जवान जान पड़ते थे ! वे अक्सर किसी फिल्म का ज़िक्र कर कहते जैन साहब , एक सुन्दर बड़ा सा घर हो और उसमे सीडियों से सफ़ेद कपड़ों में उतरती कोई सुन्दर सी लड़की हो ! नीचे फव्वारे लगे हों , उसमे बैठा जाए , तब जीवन का आनंद आये !बताईये इस त्रिलोकी को जीवन आनंद इस द्रश्य में झलक रहा था ! मैंने पूछा आएगा कहाँ से ये सब ?? तो बोले अरे फिल्मों होता है न सो बम्बई चले चलेंगे ! त्रिलोकी तर्कपूर्ण उत्तर से हम लोगों को निरुत्तर कर देता था !

त्रिलोकी जाड़े में जडाकर रातों-रात चिड़िया बनते-बनते रह गए ! उन्हें यह मालुम था कि अविवाहितों में ज्यादा गर्मी रहती है ! विज्ञान के किस सिद्धांत के आधार पर उन्होंने यह धारणा बनाई यह तो नहीं कह सकते , लेकिन वे अपने ज्ञान पर अटल थे ! एक कानियाँ बाबा उनके इस ज्ञान को और सम्रद्ध कर रहे थे ! सो एक बार कि बात है कि वाजीकरण के नुस्खे का गुप्त फार्मूला तयार कर औषधियों और मेवों को खूब घोंटा ! और दूध के साथ गरमा कर चढ़ा लिए चूँकि रात नहीं गहराई थी सो ठंडक नहीं बढ़ी थी , टी. व्ही. देखते-देखते चटाई पर ही पसर गये ! रात बढ़ते-बढ़ते ठण्ड का प्रकोप बढ़ा त्रिलोकी और सिकुड़ गए धीमे-धीमे सांप की कुंडली के समान जकड गए घरवालों ने सुबह देखा , तो त्रिलोकी इठे पड़े थे , विल्कुल निर्जीव से मानो भेद विज्ञान ने आत्मा और शरीर के भेद को जान लिया ! आनन् -फानन में उपचार शुरू हुआ और त्रिलोकी रजाई का कबच धारण कर लिए ! त्रिलोकी ने स्पष्ट किया कि ये सब इसलिए नहीं हुआ कि हमें ठंड लग गयी बल्कि , इस लिए हुआ कि नुश्के में एक चीज़ मिलाना भूल गए !

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