रविवार, 2 दिसंबर 2012

खिंचे-खिंचे से तेजाबी लाल ....



ठंड की सुबह में सब जड़ हो जाता है मन , मष्तिष्क , और ये स्थूल काया भी ! और उस पर भी किक मारू दुपहिया हो तो बस कहने ही क्या , उसे जगाते-जगाते खुद हांफ जाते हैं, तब वे वायु विसर्जन कर किकियाते हैं और बस डगडगाते हुए चल पड़ते हैं ! ऐसा ही एक बेशकीमती दुपहिया अपने पास है जो अक्सर रूठा -रूठा सा रहता है ! बिलकुल स्वामी जी की तरह सब कुछ स्वयंभू ...! पडौसी तेजाबी लाल , ये इनका वास्तविक नाम नहीं था असली मुझे भी नहीं मालुम लेकिन उनकी फितरत को देख कर असली नाम जानने की इच्छा भी नहीं हुयी अक्सर पिच्च्च..पिचकारी मानकर असली पान खब्बुआ होने का साक्षात भान करते अक्सर हम मति भ्रम का शिकार होकर उन्हें कृष्णावतार में देखते और वे  मुझ अर्जुन को ज्ञान देते - ये दांत , शरीर , पैसा,  सड़क .. क्या है तुम्हारा जो झन्ना रहे हो सब नश्वर है , जड़ है ..भूल जाओ ,आओ पान की जुगाली करो में तुम्हें उसमे मिल जाऊंगा ! मुझे व्यर्थ ही इधर-उधर ढूंढते हो ...! उनका ज्ञान दान ने मुझे भी झटका दे दिया ...! खेर तेजाबी लाल , बड़े ही घरेलू किस्म के इंसान हैं , आम लोगों की तरह सामाजिक परजीविता भी विद्यमान है ! वे एकपक्षीय सहकारिता के घनघोर समर्थक थे ! ऐसा कोई मोहल्लेदार या सगे वाला नहीं था जो उनकी इस सहकारिता में नहीं आता हो ! इस मामले वे लगभग सब को एक नज़र से देखते थे ! मकान मालिक से लेकर हर छोटे- बड़े सब उनके इर्दगिर्द मंडराते लेकिन वे चक्मादारी में इतने सिद्धहस्त थे की नेता  जैसे लोगों को भी मात देते थे ! उनका अपना दर्शन था कि चार्वाक हमसे पहले थे और उनके सिद्धांतो का अनुसरण उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है ! इस चार्वाकी सिद्धांत के प्रसार में इतने डूब गए की कब वे लोगों की निगाहों से उतर गए पता नहीं चला ! इस पर उनका अपना मानना था कि, पता नहीं लोग चार्वाक को इतना गलत क्यों मानते हैं ! आखिर समाजवाद , साम्यवाद जैसे विचार इतने बुरे तो नहीं ! खैर ,  वे हर फ़िक्र को पीकते चले जाते थे ! आज सुबह -सुबह टकरागये , बोले बड़ी ऊंची जुगाड़ है , मजेदार काम है लाखों का खेल है बस शुरू में थोड़ी सेटिंग बैठानी है ! मैं कुछ समझा नहीं बोले , दो हज़ार कि व्यवस्था करा दो ..मॉल कमवा दूंगा ! हम अब तक खुद को मुफलिसी कि हीनता से ग्रसित मान रहे थे चेहरे पर संतोष उभर आया कि चलो इस महंगाई में जहाँ पैसा संवंधों और जान से ज्यादा प्यारा हो रहा है , वहां इस वन्दे ने कम से कम इस योग्य तो समझा कि मेरे पास दो हज़ार भी हो सकते हैं ! लेकिन तेजाबी लाल के कारनामों से मोहल्ला परिचित था सो हिम्मत नहीं जुटा सका ! फिर भी मैंने उन्हें आश्वासन दिया  कि बताता हूँ ! तेजाबी पिच्च्च ने पैर के पास टोकन सा चिपका दिया और कहा चलो अब दो की व्यवस्था और रह गयी है सो और देख लेतें हैं .....! फिर धीरे से मन ही मन में बोले साले दिखाई तो बड़े टिप टॉप देते हैं , और दो हज़ार में टें हुयी जा रही है !  अब उन्हें कौन बताये कि देश की अंदरूनी हालत मनमोहन जी जानते हैं और घर की माली हालत हम ..अगर डेकोरम न हो तो कौन पूछे कि लाल भुज्जकड़ कौन ????

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