गपोड़ियों का कला विन्यास अपरिमित रहता है .....इसमें खूब कनकौए से गोते लगाते गपोड़ी धडाम से आपकी गोद में गिरते हैं और फिर शुरू हो जाते हैं .....! आज गप्पों के रथ पर सवार गपोड़ी हैं प. दिल्ली राम शर्मा ..बचपन में हमारे पडौसी थे पंडित जी ...! पंडित जी की धर्मिष्ठ देखते ही बनती थी ..कांवर हो या राम लीला सब में पंडित जी हमेशा आगे रहते ..शरीर छरहरा था रंग सांवला ..किस्मत के धनि थे से अच्छी पंडिताइन भी पा गए कह रहे थे की शंकर पूजे थे सो गौरी सी बीवी पा गए ..! गाँव में खेती किसानी भी रही सो पंडित जी बिंदास से घूमते खूब गपियाते ..! पंडित जी का दर्शन बहुत चोखा था ...जहाँ लाभ वहां धरम और जहाँ हानि वहां अधर्म ..! गल्ला की छोटी-मोटी आढ़त में इस दर्शन का भरपूर उपयोग करते ..किसान भी भोचक्क ...आखिर इतना ज्ञानी व्यापारी जो मिल गया ..! एक बार गर्मी की रातों में लाईट के अभाव में पंडित जी घर की गैलरी में गप्पों की पोटली खोले बैठे थे अचानक एक किस्सा निकाल बैठे ..., बोले ' एक बार गाँव में राम लीला का पाठ खेल रहा था ..मैं राम बना था ...लख्खों की भीड़ थी मेरा एक विरोधी जो हमेशा रावण बनता था सो खार खाए बैठा था ..! एक बार धनुष यज्ञ के समय ससुरा चाल खेल गया और लकड़ी के धनुष की जगह लोहे की सरिया डाल दी ..मैंने धनुष उठाया और बोलना शुरू किया ..जैसे धनुष पर डोरी चडाई धनुष ऐंठ गया ..टूटे ही नहीं , फिर क्या मैंने हनुमान जी को सच्चे मन से याद किया और कहा मालिक लाज रख लो ..अचानक हनुमान जी की ताकत मेरे अन्दर आ गयी ..और धनुष का चटाका बीता ...और ससुरे का मुहँ ऐंठ गया ...! '
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