गप्पें कुलांचे मारती हुयीं कब अपने अस्तित्व को मिटा लेती हैं मालुम ही नहीं पड़ता , और गपोड़ी अपने रथ को कुशल सारथी की भांति हांकते हुए अंतत: पहुंचा ही देता है आपको , जहाँ उसे पहुँचाना होता है ....! गपोड़ी श्रंखला में आजके नायक है अनिल बाबू ....! बचपन में हम सब साथ ही खुराफाती जीव थे ..मोहल्ला भर हलकान रहता था ..घर के पीछे बसी ऑफीसर कालोनी में क्या जज , और क्या कलेक्टर सबकी अमिया हमारे पेट के गोदामों दफ़न हो जाती थीं ..उसी समय हमारे मंडी के मैदान में मिटटी भराई का काम चल रहा था .. देर रात तक दूधिया रोशनी में हम सब कल्पनाओं के पंख लगाये उड़ते .....! भूत , प्रेत , ज़िन्द . खबीश , चुड़ैल ..सब हमारी जेब में होते ...! अनिल के समान हम सभी सिंगल चेसिस बाली गाडी ही थे ..जिनके एवरेज पूछो ही मत .... ! बहुत दुनिया दारी तो जानते न थे ..लेकिन देश जैसा कुछ होता है यह १५ अगस्त , २६ जनवरी से जरूर जान गए थे...यही वह समय था जब आतंकी घटनाएँ कभी कभार सुनाई देने लगी थी ! ...इन घटनाओं में सीधे पाकिस्तानी हाथ को बताया जात था ..सच्चाई से हमें क्या मतलब ..हमें तो बस चढ़ना था सो चढ़ गए ....! अनिल की देश भक्ति हम से कुछ अंगुल ऊपर थी ...वार्ता के दौर में उभरते तनाव को खारिज करते हिये अनिल बिना भारत सरकार को बताये गुप्त सूचना लीक कर दी ...और बताया की हमारे पास ऐसी तोप है जो एक गोले से पाकिस्तान को साफ़ कर देगी ...उसने अमेरिका को भी नहीं बख्सा ( भले ही नहीं मालूम ये आदमी है या औरत ...या देश या मोहल्ला , बस सुन लिए तो चढ़ गये ...) कहा की हमारे पास एक ऐसी नालकी है की एक बार चल्येदें तो अमेरिका ख़त्म हो जाए ...! हमारी जान में जान आई चलो बच तो गए नहीं तो पता नहीं क्या होता ...बस फिर खेल की योजना ...प्रारंभ हो गयी ....!
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