गपोड़ियों की खासियत होती है की उनकी कल्पना नितांत मौलिक होती है ..और आज तक किसी गपोड़ी पर कॉपी राइट एक्ट लगा हो याद नहीं पड़ता ...! खैर इस कला की विशेषज्ञता हांसिल कर चुके लोगों में आज के गपोड़ी है रामनिवास .....! मुझसे दो सावन ज्यादा ही झूले हैं लेकिन लम्बाई में थोड़ी मात खा गए लेकिन मुझसे न ही भाईपना पा सके और ना ही मित्रता ...बस परिचय दार कहे जा सकते हैं इधर गत २ वर्षों से अता-पता नहीं है लेकिन , उनकी बातें अक्सर जहन में रहती हैं ...! रामनिवास प्रकांड वेदज्ञ परिवार के अंश थे लेकिन उनपर किसी भी ऋचा की मात्रा की छाया पड़ी हो कभी महसूस नहीं करा पाए ...सिगरेट लुक-छुप कर धोंक लेते थे..स्कूल की दीवार पर सिगरेटी टोंटे उनकी मजा मोज की गवाही देते थे ...! सिगरेटी धुआं कब उन्हें प्रयोगशाला का भावी नमूना बना गया मालूम ही नहीं पड़ा ...! देखते ही देखते वे जीवाश्म से हो गए ..किसी ने बताया की प्रेम का ला-इलाज़ रोग पाल बैठे हैं कहते हैं की ५० % है लेकिन इनकी तरफ से ही ..! सुनने में आया की किसी ठाकुर साहब की बिटिया को तांक बैठे हैं..और उसके पिता दरोगा हैं ...! सो मुहब्बत चाहते हुए भी प्रकट नहीं हो पा रही थी ..! शरीर पर चढ़े कपडे बस किसी प्रकार हड्डियों से टिके हैं ..और हाथों पर चढ़ा कड़ा बार - बार रुके रहने की मसक्कत करता है ..! इसी भाव बोध के साथ वे जोश में आकर सेना की भर्ती देखने चले गए ...! असफल होकर लोटे ...तो उनसे पूछ ताछ प्रारंभ हो गयी ..राम निवास बोले - ' अरे वे तो कह रहे थे की भर्ती हो जाओ जल्दी प्रमोशन करा देंगे ..ऐश से रहना .., लेकिन फिर परिवार कौन देखता सो बस लौट आये .." राम निवास साढ़े नौ अंगुल का सीना ताने सिगरेट धोंकने की तयारी करने लगे.....!!!
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