गपोड़ी सीमाबद्ध नहीं होते ये असीम है ..इसीलिए ये हर जगह हर माहोल में मिल जाते हैं ..! गपोड़ियों के साक्षात्कार क्रम आज के गपोड़ी हैं इन्द्र प्रकाश ..स्वयं को इन्दर को कहलाना पसंद करते हैं ....! पता नहीं उन्हें इस नाम से इतना मोह क्यों है ..हालांकि वे नाम के अनुरूप वे स्वयम को चरितार्थ कर पाए हों इसमें संदेह है ...! हां तो इन्दर से गाहे -बगाहे मुलाक़ात हो जाती है जब हम पडौस की दूकान पर चाय पीते हुए मिलते हैं ! साईकिल सवार इन्दर क्या करते थे ये तो मालूम नहीं लेकिन आज कल धर्म पर बड़ी ही आस्था प्रकट करते हैं ..जो उनके विचारों से दिख जाता है ...! .." ससुरी लक्ष्मी सनीचरी होए गयी ..बान्ध्वेउ से नहीं बंधती ..." ये उनका भाव था ..अर्थात वे व्यापक अर्थवाद के समर्थक और लक्ष्मी के स्वाभाविक पुजारी लेकिन मलाल यही था की इतने जतन के बाद भी ..लक्ष्मी की कृपा नहीं मिल पा रही ..! आज कल शायद दारागंज में कहीं किसी प्रयागी पण्डे का सानिध्य प्राप्त कर रहें हैं ...और उस से कुछ अतिशय कारी गुण सीख रहे है ..! उनकी बातों से लगता है की वे कभी खुशहाल वैवाहिक जीवन भी जिए होंगे लेकिन उनके मानसिक पलायन और कुंठित मनोदशा ने उन्हें इस संस्था से मुक्त करा दिया शायद इसीलिए उनका धर्म के प्रति अनुराग इस कदर बढ़ गया ...! एक बार उन्होंने बातों -बातों में स्वयं को तमोली समुदाय का बताया था ..और थोड़े सामंती होते हुए कहा की महोबा के निकट कहीं ज़मींदारी थी उनके परिवार की ..और वहीँ कहीं पान की खेती भी होती थी ..! लेकिन आज़ादी के बाद सब सत्यानाश हो गया ..! एक भारी भरकम गाली देते हुए सरकार को कोसने लगे ....लेकिन ठसक दिखाते हुए कहा की ..ददुआ हमाये पायें छूअत हतो...( दस्यु ददुआ पैर छूता था ) इसी आत्म संतोष के साथ वे साइकिल की घंटी बजाते हुए नया आइटम सोंग गाते हुए निकल लिए ...!
waah sir ji humare samaj me aneko gappebaaz hai par un ko dhundh ke unka charitra chitran prastut karte hai ye qaabil e tarif hai
जवाब देंहटाएंDhanywad Amit ...
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