गपोड़ी कला गहरे यथार्थ को भी समाहित किये होती है ...भले ही वह यथार्थता कल्पना के आधार पर खड़ी होती है ..! आज गपोड़ी कला की श्रंखला में आ रहे हैं ..गपोड़ी सुखलाल ....! जब मैं अपने मेडीकल के पारिवारिक व्यवसाय में सहयोग कर रहा था , उसी दौर की बात है ...! दूकान के सामने डॉक्टर साहब की दूकान थी ...और उनके यहाँ सुखलाल जी , कम्पाउन्दर के रूप में सेवाएँ दे रहे थे ..! चिकत्सकीय अनुभवों के आधार पर वे स्वयम को डॉक्टर से कम न लगाते थे ..हाँ लेकिन स्वयं एक विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे ...! कहने की बातें हैं .., बकौल सुखलाल शहर के सारे नामी डाक्टर उन्हें नाम से जानते थे ...! और ये तो डाक्टर साहब पर एहसान था की उनकी क्लीनिक पर सेवाएँ दे रहें थे .....! सुखलाल , बिकलान्गता के शिकार थे l लेकिन उनकी कार्य क्षमताओं पर कोई सवाल नहीं था ...! गुटखे के खासे शौक़ीन थे ...दांत आदिम ज़माने की धरोहर लगते थे ...शरीर की वलिस्ठता को ये उरई के गुटखा निर्माता लूट ले गए ....! खैर एक बार सर्दी के समय सुखलाल दूकान पर आये हुए थे ...उन्होंने एक मजेदार बताई ..., एक बार सी एम् ओ साहब दौरे पर अपने साथ ले गए ..और सारे वरिष्ठ डाक्टर से ज्यादा सम्मान देते हुए अस्पतालों के निरीक्षण का ज़िम्मा सुखलाल को दे दिया , ..उसी दौरान कई डाक्टर अनियमितता के चलते विभागीय कार्यवाही के शिकार हुए थे ..बकौल सुखलाल , वे सारे नोटिस उन्होंने ही जारी के कराये थे ....!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें