रविवार, 8 मई 2011

कर्म

स्वर्ग का द्वार खुला ...चित्रगुप्त ने बताया की एक ही सीट खाली है। सभी अपनी जुगाड़ में लग गए ....नेता जी ने सेटिंग बनायीं ..रिश्वत की पेश-कश की अपनी औकात दिखा ही दी। पर बात नहीं बनी ... एक मठाधीश ने भी भगवान् की सेवा का वास्ता देकर अपने लिए जगह चाही लेकिन चित्रगुप्त उनकी हकीकत जानते थे कितने पाप और अत्याचार किये है भूलोक में ..दान लेकर लाखों की संपत्ति बनायीं और रत्न जडित सिंह्सन पर बैठा । उसपर भी विचार नहीं किया गया । ....
वहीँ कोने में एक विचार सा लड़का खड़ा था मांगने की चाह नहीं दिख रही थी ,लगता था कि उसे हर समझोते स्वीकार है ... तभी चित्रगुप्त ने उस से पूछा कि तुम कौन हो? लड़के ने बताया महाराज में सिविल सेवा कि तयारी करने वाला एक प्रतियोगी हूँ ..चित्रगुप्त ने कहा कि बस-बस चुपकर बेटा अब क्या रुला कर ही छोड़ेगा ....और उस लड़के को स्वर्ग में स्थान दे दिया ......

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें