बलबीर भैया तेरी बलिहारियाँ .....
बलबीर भैया को धरती रोंदते हुए लगभग २९ साल हो चुकें हैं , इनका भोगोलिक विन्यास यही कोई ४ फीट ७ इंच के आस-पास होगा ज्यामितीय निर्धारण थोड़ा सा कठिन जान पड़ता है लेकिन हाँ अंकगणित रूप से पूरे आदमी ही जान पड़ते थे ! बलबीर भैया का मानना था कि उनके पुरखे राजस्थान के रजवाड़े से थे सो इस भ्रम को ताउम्र बनाए रखने के लिए एक नुकीली मूंछ धारण किये हुए थे ! लेकिन मूंछ का मर्दानगी से कोई संवंध कभी वे सीधे ही स्थापित नहीं कर पाए सिवाय इसके कि ये तो राजपूतानी शान है ! खैर ,बलबीर भैया मादाओं में चक्षु परित्यक्त थे , कहते हैं कि एक बार नवरात्रि उत्सव के दौरान देवी दर्शन करते -करते इतने भाव-भिवोर हो गए कि स्वयम को त्याग कर परकाया प्रवेशी बने जा रहे थे ! वो तो भला हो उन तांत्रिकों का जो परकाया प्रवेश का अबूझ ज्ञान सार्वजनिक नहीं था नहीं तो पता नही क्या कर बैठते ! हाँ, उसके बाद उनकी तंद्रा भंग करने के लिए लात-जूते चले तब वापिस इहलोक दर्शन कर सके बलवीर भैया ! सबेरे-सबेरे मुहं सुजाये रेलिंग पर चिपके थे स्कूली टाइम था , जब पूछा क्या हुआ ?? मासूमियत से बोले अरे जैन साहब बस कल थोडा गाडी भिड़ा लिए थे ! बलबीर भैया अलमस्त शौक़ीन थे , कमरे में हर वह सामान अंकित था जिसे ये अवचेतन मष्तिष्क दवाए बैठा था ! मसलन , पुरानी दिव्या भारती एक जोड़ी करिश्मा , ऐश्वर्या की मुखाकृति , कमल सिद्दू का फुलाफुल पोज एकाध अंग्रेजी टाईप की भी , B M W , फेरारी , हयाबुसा और हाँ एक व्हाइट हाउस भी था ! मजे की बात यह थी कि वे ये सब इच्छाएं भगवन के बिना पूरी करना चाहते थे ! क्योंकि उनके कमरे में भगवान् की छोटी बड़ी , आधी-अधूरी कोई भी तसवीर मौजूद नहीं थी ! इस मामले में वे मार्क्स को भी अपना शागिर्द बनाए हुए थे !
बलबीर भैया बहुत कर्मनिष्ठ समाजसेवी हैं! सो सुबह से शाम तक बिना फल की इच्छा किये हुए लगातार कन्या रक्षण हेतु स्वयं स्कूल से घर तक घर से स्कूल तक इस सेवा को निशुल्क उपलव्ध कराते इसमें कोई विभेद न था, सब उनकी अपनी ही थीं ! आज एक तो कल कोई और इस प्रकार वे इस सेवा दौर में अपनी इच्छाएं भी तृप्त कर परम सुख प्राप्त कर लेते थे ! इस मामले में वे नेताओं से कमतर तो न थे , जो सेवा करते -करते ही स्व कल्याण कर लेते हैं ! प्रसंगवस पूछ बैठे कि बलबीर भैया शादी - वादी का इरादा है कि नहीं ?? बड़े प्यार से बोले , भैया क्यों अपराध कराते हो आज सडक पर लड़कियों का चलना दूभर हो गया है , अगर उनकी रक्षा नहीं कर सके तो धिक्कार है ! और इस सेवा कार्य में शादी नाम का रोड़ा न फसाओ ....! अचानक उनकी निगाह बरबस ही ३६० डिग्री पर घूम रही थी वे रक्षण के लिए तयार थे ....! इसीलिए कहा गया है कि जो रक्षा करने का संकल्प रखते हैं वे ही तो राक्षस हैं ! रक्ष: स: इति राक्षस: .....! जय हो बलबीरे जीते रहो
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