दुलहनिया पाए संतोष भैया .....
संतोष भैया , इन्हें ' दादुर' भैया कहने में कभी कोताही नहीं वरती! वे इसे प्यार का संवोधन मानते थे , 'दादुर' कहने का अपना निहितार्थ था ! वे अक्सर बरसात के दिनों में ही लोगों के कमरे पर जलपान या आहार के लिए प्रगट होते थे ! छात्रावासी जीवन में वे अक्सर हमलोगों को प्यार से वे 'कुकुर' बुलालेते थे ! इसमें उन्हें बड़े ही अपनेपन का अहसास होता था और हम लोग भी उनका कोई भ्रम नहीं तोडना चाहते थे ! लेकिन वे बहुत निकटता की परिधि में कभी आ नहीं सके पता नहीं क्यों ?? संतोष भैया की उम्र लगभग हम लोगों के बराबर ही थी , यही कोई इमरजेंसी के एकाध वर्ष पहले की शायद भादों का महीना भी रहा हो ! संतोष भैया जब अध्ययन के लिए आये तब खासे किशोर थे युवा होने की तयारी में थे मूंछे आने का असफल प्रयास कर रहीं थी लेकिन संतोष भैया उनकी छटाई कर देते सो चिरकालिक किशोर से दिखाई देते ! एक बार गलती से केंची का संगम मूछों और दाढ़ी से न हो सका सो रातों रात युवा हो गये ! शहर की हवा में सुरती का सुख भी पा गये ! लगता है की कटनी से एकाध ट्रक चूना तो इनकी गालों की सफाई कर गया होगा ! लेकिन मुख धवलता नदारद थी दन्त पंक्ति , मुरम की लालामी को मात देती थी ! संतोषी सदैव सुखी होतें हैं ये इन्हें देख कर कभी लगा नहीं , सदैव व्यग्रता विद्यमान रही जो शायद इनके विकास की इच्छा दर्शाती थी !
दादुर भैया में बड़ा आदमी बनने की उत्कट इच्छा हम लोगों के समान ही थी ! सो इसी प्रयास में सिविल सेवा की तयारी प्रारंभ कर दी ! राष्ट्रसेवा का इस से बेहतर विकल्प सिर्फ नेता गीरी हो सकता था लेकिन परिवार कोई ऐसा हाथ रखने वाला नहीं था , सो इस इच्छा को पाल न सके ! बस ले देकर सिविल सेवा ही बची थी सो कूंद पड़े तन और मन से ...!
उम्र बढ़ते-बढ़ते वे प्रांतीय सेवायों की और झुक गए और उम्र बढ़ी तो हम लोगोंका साथ छूटने लगा लेकिन वे ठौर से नहीं डिगे ! प्रांतीय सेवायों से गुजरते हुए शिक्षक भर्ती, कांस्टेबल भर्ती , फ़ूड इन्स्पेक्टर , और इसी प्रकार की नाना सेवाओं की इच्छा पाले प्रौढ़ वय के तार से जुड़ने लगे !अंकल शब्द अक्सर उन्हें सुनाई देने लगा ! घरवाले भी कन्नी काटने लगे , बाल भी साथ छोड़ने लगे इसी उतार चड़ाव के दौर के अंतिम क्षणों में निजी बीमा कम्पनी के अभिकर्ता बन गए ! साहेब से कम न लगाते थे, खुद को ! किरायेदारी का कमरा अब तक नहीं छोड़े थे ...! और इसी पूरे उपक्रम में शादी की बात भी चल निकली ! विकल्पों का अभाव था सो प्रस्ताव तुरंत लपक लिए , भरी गाडी में टूटी सीट भी सुख देती है इस भाव को संतोष भैया से बेहतर कौन जान सकता था ! कार्ड छपे एक कार्ड हम जैसे कुकुरों का सांझा करके रवाना किया गया था ! सोचा इसी बहाने सबसे मिलना हो जायेगा ! शादी में उल्लास से सब मिले संतोष भैया पहले कह दिए बरात में सबको साथ ही रहना है ! रात को किराये की कार खाली होने के बाद बारात चली , हम भी चलने लगे ! संतोष भैया के चेहरे पर संतोष के भाव थे ...! उनसे हम सब ने पूछा की भैया घोडी काहे नहीं मंगा लिए ! संतोष भैया बोले , अरे अब घोडी पर बैठने लायक बचे ही कहाँ , सारा पौरुष तो सिविल सेवा की तयारी ने हर लिया और पौरुषहीन पुरुष को घोडी पर बैठने का अधिकार नहीं है ! बड़े पते की नैतिक बात कह गए संतोष भैया , काश नैतिकता विहीन नेताजी भी इस विचार से परिचित हो जाते ! जय हो ...दादुर भैया की
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