दादा, भारत विभाजन की कहानी पर आपका एक टुकडा याद आ रहा है , कहें तो दौहराउ ...
हाँ बसेसर , जरा बताओ तो भला ..
दादा आपने कहा था कि, एक कहानी को इस देश में प्रचारित होने दिया गया है कि लेडी माउन्ट बेटन ने नेहरु जी पर कुछ दुष्ट प्रभाव का प्रयोग किया ! इतिहास की गप्प - गोष्ठियां वास्तव में इस झूठ को सत्य बना सकती हैं ! मौलाना आज़ाद पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अनेक वर्षों की इस सामयिक गप्प को इतिहास बनाने की कोशिश की ! यद्यपि ऐसी बातें नेहरूजी के तात्कालिक लाभ की हो सकती हैं , क्योंकि वे उन्हें सीधे गुनाह से मुक्त करती हैं और उन्हें आकर्षण और माया के शिकार जैसा रूप देती है , लेकिन आगे चलकर उनकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाती है और राजनीतिक प्रक्रिया की गहरी धाराओं को अछूता छोड़ देती हैं !
कहीं इतिहास भी लेडी माउन्ट बेटन को वह महत्त्व न दे दे जो उन्हें अब तक सामयिक गप्पें देती रही हैं, इसलिए यह बुद्धिमानी होगी कि यह याद कर लिया जाए कि लगभग ऐसी ही भूमिका मेडम चियांग काई शेक पर थोपी गयी थी ! चीन की मेडम ने वास्तव में उस समय के ब्रिटिश वायसराय लार्ड लिनलिथिगो को उत्तेजित किया था और थोडा दुखी भी किया था क्यूंकि उनकी परवाह न करके उसने अपने बाल-मित्र की बरौनियों को बहुत अधिक पसंद किया था ! इसके पहले भी ऐसे मौके आये थे , जब नेहरूजी ने अधिक सामान्य और अधिक क्रान्तिकारिणी औरतों से मित्रता की थी , जैसे हिन्दुस्तान और ब्रिटेन की एलेन विल्किनसंस! मैं पूरे निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि यदि श्रीमती ख्रुश्चेव हो और यदि वह मनहर और संलाप - प्रिय हों तो नेहरूजी उनके पीछे उसी तरह दौड़ते फिरेंगे जैसे वे इन दूसरी औरतों के पीछे दौड़ते फिरें हैं ! इसमें किसी प्रकार की गलत फहमी न हो ! लेकिन वे ऐसा तभी करेंगे जब भारत राष्ट्र के मामले की जरूरत हो , स्पष्ट है, उनके अपने हिसाब से !
हाँ बसेसर , जरा बताओ तो भला ..
दादा आपने कहा था कि, एक कहानी को इस देश में प्रचारित होने दिया गया है कि लेडी माउन्ट बेटन ने नेहरु जी पर कुछ दुष्ट प्रभाव का प्रयोग किया ! इतिहास की गप्प - गोष्ठियां वास्तव में इस झूठ को सत्य बना सकती हैं ! मौलाना आज़ाद पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अनेक वर्षों की इस सामयिक गप्प को इतिहास बनाने की कोशिश की ! यद्यपि ऐसी बातें नेहरूजी के तात्कालिक लाभ की हो सकती हैं , क्योंकि वे उन्हें सीधे गुनाह से मुक्त करती हैं और उन्हें आकर्षण और माया के शिकार जैसा रूप देती है , लेकिन आगे चलकर उनकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाती है और राजनीतिक प्रक्रिया की गहरी धाराओं को अछूता छोड़ देती हैं !
कहीं इतिहास भी लेडी माउन्ट बेटन को वह महत्त्व न दे दे जो उन्हें अब तक सामयिक गप्पें देती रही हैं, इसलिए यह बुद्धिमानी होगी कि यह याद कर लिया जाए कि लगभग ऐसी ही भूमिका मेडम चियांग काई शेक पर थोपी गयी थी ! चीन की मेडम ने वास्तव में उस समय के ब्रिटिश वायसराय लार्ड लिनलिथिगो को उत्तेजित किया था और थोडा दुखी भी किया था क्यूंकि उनकी परवाह न करके उसने अपने बाल-मित्र की बरौनियों को बहुत अधिक पसंद किया था ! इसके पहले भी ऐसे मौके आये थे , जब नेहरूजी ने अधिक सामान्य और अधिक क्रान्तिकारिणी औरतों से मित्रता की थी , जैसे हिन्दुस्तान और ब्रिटेन की एलेन विल्किनसंस! मैं पूरे निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि यदि श्रीमती ख्रुश्चेव हो और यदि वह मनहर और संलाप - प्रिय हों तो नेहरूजी उनके पीछे उसी तरह दौड़ते फिरेंगे जैसे वे इन दूसरी औरतों के पीछे दौड़ते फिरें हैं ! इसमें किसी प्रकार की गलत फहमी न हो ! लेकिन वे ऐसा तभी करेंगे जब भारत राष्ट्र के मामले की जरूरत हो , स्पष्ट है, उनके अपने हिसाब से !
नेहरू जी ने ने अपने राजनीतिक मतलबों के लिए लेडी माउन्ट बेटन का उपयोग किया था ! इस स्थिति के अनुमान को दुसरे पक्ष से जोड़ना भी उचित होगा ! लेडी माउन्ट बेटन और उनके लार्ड ने भी उसी तरह अपने राजनीतिक मतलबों के लिए नेहरूजी का इस्तेमाल किया !
हाँ बसेसर , ये गलत नहीं हैं ! नेहरूजी से वैचारिक गतिरोध अलग बात है लेकिन सही को सही कहना ही राजनीतिक सम्मान है , समझे ...
जी दादा ...प्रणाम
( लोहिया जी , के उद्धरण का वार्तालाप शैली में प्रयोग किया गया है)